BY VISHWA MOHAN
हर निवेश में फायदे और नुकसान दोनों होते हैं, सिर्फ फायदे की जानकारी तो हर कोई देता है, लेकिन इसके पीछे छिपी दिक्कतों को हमने इस आर्टिकल के जरिए बताने की कोशिश की है। ताकि आपको निवेश में किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं हो, और अपना फैसला स्वतंत्र तरीके से कर सकें।
म्यूचुअल फंड्स के नुकसान:
(1) रिटर्न की गारेंटी नहीं होती
म्यूचुअल फंड्स का रिटर्न बाज़ार की चाल पर निर्भर करता है। ऐसे में म्यूचुअल फंड्स के रिटर्न में उतार-चढ़ाव की पूरी संभावना बनी रहती है। साथ ही फंड के निवेश करने वाले से भी गलती हो सकती है। गलत सिक्योरिटी चुनने से नुकसान भी उठाना पड़ता है। ऐसे में म्यूचुअल फंड में निवेश से पहले निवेशकों को जोखिम लेने की क्षमता होनी चाहिए। हालांकि डेट फंड में नुकसान की गुंजाइश बेहद कम होती है, लेकिन इस संभवान में इंकार नहीं किया जा सकता है। इक्विटी फंड्स के रिटर्न में काफी उतार-चढ़ाव रहते हैं।
(2) जरूरत से ज्यादा डाइवर्सिफिकेशन
जैसे डाइवर्सिफिकेशन से नुकसान कम होने का डर रहता है, ऐसे ही ज्यादा डाइवर्सिफिकेशन से मुनाफा भी कम होने का खतरा बना रहता है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी फंड के पोर्टफोलियो में से कुछ शेयरों ने 100% से ज्यादा का रिटर्न दिया हो, तो इसका मतलब ये नहीं है कि आपका फंड दोगुना हो जाएगा। क्योंकि पोर्टफोलियो का कोई न कोई शेयर का रिटर्न इतना कम होगा जो पूरे पोर्टफोलियो पर भारी पड़ता है।
(3) सही म्यूचुअल फंड का चुनाव आसान नहीं
म्यूचुअल फंड चुनने के लिए पिछला प्रदर्शन मुख्य आधार होता है। जबकि शेयर के चुनाव में कई अलग-अलग चीजें मौजूद रहती हैं। ऐसे में म्यूचुअल फंड्स के प्रदर्शन में भी फंड मैनेजर के चुनाव के मुताबिक प्रदर्शन में भी तेज़ी से बदलाव होता रहता है। ऐसे में बेहतर फंड्स चुनना म्यूचुअल फंड में आसा नहीं होता है। क्योंकि, आज बेहतर प्रदर्शन करने वाले फंड की कोई गारेंटी नहीं है की आगे इस तरह का प्रदर्शन जारी रहेगा।
(4) निवेश लागत
म्यूचुअल फंड में निवेश के वक्त और निवेश को निकालने के वक्त चार्च देना पड़ता है। म्यूचुअल फंड का प्रबंधन देखने वाले फंड मैनेजर की सैलरी काफी ज्यादा होती है, जिसका बोझ भी फंड को ही उठाना पड़ता है, और इससे वास्तविक आय कम हो जाती है। ऊपर से छोटी अवधि और लंबी अवधि के पूंजी लाभ वाले टैक्स का बोझ झेलना पड़ता है।
(5) बाज़ार में ज्यादा फंड्स होने से दुविधा
बाज़ार में म्यूचुअल फंड्स की हजारों स्कीम्स मौजूद रहती हैं। ऐसे में निवेशकों को हमेशा दुविधा होती है कि किस स्कीम में ज्यादा पैसा बनेगा। निवेशक एक ही कैटेगरी के कई फंड्स ले लेते हैं। आम निवेशकों के लिए सही फंड चुनना काफी पेचीदा होता है।
(6) फंड के निवेश पर नियंत्रण नहीं
फंड मैनेजर फंड का पैसा किन सिक्योरिटीज में लगा सकते हैं इस पर एक निवेशक का कोई नियंत्रण नहीं होता है। फंड मैनेजर्स अपनी योग्यता और समझ-बूझ के हिसाब से फंड का पैसा लगाते हैं।
(7) अनैतिक काम
कुछ म्यूचुअल फंड्स तो निवेशकों के पैसे का इस्तेमाल दूसरी कंपनियों के लिए भी कर लेते हैं, और इसका ब्याज निवेशकों नहीं पहुंचता है। इन कारणों से नेट एसेट वैल्यू कम हो जाता है।
(8) फंड बंद होने का खतरा
मंदी के दौर में इक्विटी और डेट दोनों तरह के फंड्स अचानक से एसेट मैनेजमेंट कंपनियां बंद कर देती हैं। क्योंकि फंड हाउस भी आपके पैसों का कहीं न कहीं निवेश करते हैं, अगर उनके निवेश में दिक्कतें आती हैं तो मुश्किल सीधे आप पर यानी म्यूचुअल फंड के निवेशकों पर आती है।
(9) मंदी में भारी नुकसान
मंदी के दौर में म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो आपका 50% से लेकर 70% तक का भी नुकसान दिखा सकता है। इस दौर में निवेशक की चिंता बढ़ना लाजिमी है।
(10) जरूरत के समय निकासी पर बड़ा घाटा मुमकिन
मंदी के दौर में म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो बड़ा घाटा दिखाता है। ऐसे में अगर आपके लिए पैसे की निकासी जरूरी है और आप म्यूचुअल फंड से निकलते हैं तो भारी-भरकम नुकसान हो सकता है। इसलिए म्यूचुअल फंड में निवेश एक तरह से टाइमिंग का खेल है। कभी भारी रिटर्न तो कभी भारी नुकसान भी दे सकता है। इसलिए बेहद जरूरी कामों के लिए म्यूचुअल फंड में निवेश से बचें। फिक्स रिटर्न वाले विकल्पों का चुनाव करें।